श्रीमदभगवद गीता
श्रीमदभगवद गीता के 11वें अध्याय के पाठ करने व सुनने का बहुत ही महत्व कहा गया है। इस "विश्वरूप दर्शन" नामक अध्याय के पाठ व श्रवण से परम कल्याण की प्राप्ति होती है । यह इस संसार के भयों-दुखों का नाशक तथा अनेक जन्मों के दुख रूपी कर्मों का नाशक भी कहा गया है। भगवदगीता के इस अध्याय को सुनने मात्र से महान दोषों का नाश सहज ही हो जाता है।
ध्यान व्यक्ति को जीवनभर सकारात्मक सोच से जोड़ने का माध्यम है, जिससे विकारों का शमन होता है। ध्यान की गंभीरता व गंभीर स्थिरता व्यक्ति के चारों ओर सकारात्मक स्थितियों का निर्माण करती है। इससे क्रोध, काम, लोभ और मोह के बंधनों से मुक्ति मिलती है। ध्यान की प्रक्रिया से जुड़कर नकारात्मक मनोभावों पर नियंत्रण का अभ्यास होता है, और अनेक प्रकार से आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होकर उस ब्रह्म-स्वरुप ईश्वर के सानिध्य का आशीर्वाद भी मिलता है।
हमारे देश में बढ़ते वृद्धाश्रमों की संख्या सच में ही एक बड़ी समस्या का रूप लेती जा रही है। पहले तो यह समस्या केवल बड़े शहरों तक ही सीमित थी लेकिन अब यह भारत के गांवों में भी पसरना शुरू हो गई है। अब गावों में भी बच्चे अपने माँ-बाप के साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार करने लगे हैं। अत: अब गाँव, छोटे कस्बों में भी वृद्ध आश्रम खुल रहे हैं या उनकी आवश्यकता महसूस हो रही है। क्योंकि अब गाँव व् शहरों की संस्कृति डिश टेलिविजन व् इन्टरनेट के आ जाने से अब एक जैसी ही हो गई है। और इस संस्कृति को पैदा करने में बेहूदी फिल्मों का बहुत बड़ा हाथ है। ऐसा होने के और भी बहुत सारे कारण हो सकते हैं जिसमें माँ-बाप को भी दोषी पाया जाता है। क्योंकि इस समस्या के कुसूरवार केवल बच्चे ही नहीं माँ-बाप भी होते हैं।
पूरे विश्व में भारत की छवि एक शाकाहारी देश के तौर पर है । लेकिन पिछले 20 से 30 वर्षों से भारतीय लोग पाश्चात्य संस्कृति की अंधी दौड़ में शामिल होकर, अब भारत में भी मांसाहारियों की संख्या तेजी से बढती जा रही है । भारत में किये गये एक सर्वेक्षण के अनुसार वर्तमान में मांसाहारियों का प्रतिशत बहुत अधिक बढ़ गया है , जो अनुमान रूप से 45 से 50 प्रतिशत से अधिक हो गया है । जो पहले की तुलना में बहुत ही अधिक है । कहने का तात्पर्य है कि पिछले 20 वर्षों में देश में मांस खाने वाले लोगों में भारी बढ़ोतरी हुई है।
श्रीमदभगवत गीता के 6 (छटवें) अध्याय के 37वें में श्लोक में अर्जुन जिज्ञासा करते हैं की हे कृष्ण! जिसकी साधना में श्रद्धा है पर जिस का प्रयत्न शिथिल है वह अंत समय में अगर योग से विचलित हो जाए तो वह योग सिद्धि को प्राप्त ना करके किस गति को प्राप्त होता है? इसी अध्याय के 40वें श्लोक में इस प्रश्न का उत्तर देते हुए भगवान कृष्ण कहते हैं कि हे प्रथा नंदन ! उसका ना तो इस लोक में और न परलोक में ही विनाश होता है क्योंकि कल्याणकारी काम करने वाला कोई भी मनुष्य दुर्गति को प्राप्त नहीं होता। जो साधक अंत समय में किसी कारणवश योग से साधना में विचलित हो गया है वह योग भ्रष्ट साधक मरने के बाद चाहे इस लोक में जन्म ले, चाहे परलोक में जन्म ले, उसका पतन नहीं होता। उसकी योग में जितनी स्थिति बन चुकी है उससे नीचे वह नहीं गिरता। उसकी साधना नष्ट नहीं होती। उसके जीवन का उद्देश्य नहीं बदलता। वह आगे भी जन्मता मरता रहे किंतु उसका पतन नहीं होता।
वियतनाम की इस रोमांचक यात्रा में आपका स्वागत है। वियतनाम की राजधानी हनोई है, और अपनी सदियों पुरानी वास्तुकला और दक्षिण पूर्व एशियाई, चीनी और फ्रांसीसी प्रभावों के साथ समृद्ध संस्कृति के लिए जानी जाती है। वियतनाम का हनोई शहर दिलचस्प और एक गहरा आकर्षण लिए हुए है। एक बात पक्की है कि जो कोई भी हनोई जाता है, हनोई लोगों पर अपनी गहरी छाप छोड़ता है। अविश्वसनीय फ्रांसीसी औपनिवेशिक वास्तुकला से लेकर अभूतपूर्व वियतनामी व्यंजनों तक, यह एक ऐसा शहर है जो आपकी सभी इंद्रियों को अच्छे से तृप्त करना जानता है। वियतनाम की राजधानी, दुनिया की प्राचीन राजधानियों में से एक होने के नाते, हनोई में करने के लिए बहुत सी चीजें हैं जिन्हें आप मिस नहीं करना चाहेंगे।
आज के युग में अधिकतर लोग अपनी अति भौतिकतावादी प्रवृति के कारण व तामसिक खान-पान की वजह से अत्यधिक काम, क्रोध, मोह, लोभ, अहंकार, ईर्ष्या, हिंसा व द्वेष जैसे दोषों से जकड़े रहते हैं। उन लोगों के इन्हीं दोषों के कारण उनसे लगातार राजसिक-तामसिक तरंगें स्वतह ही प्रवाहमान होती रहती हैं और नकारात्मक ढंग से अन्य लोगों को प्रभावित करती रहती हैं। सामान्तया इसी तरह का बुरा प्रभाव जो दूसरों पर पड़ता है, इसे ही तामसिक कुदृष्टि या नजर लगना कहा जाता है। जो उनकी विषेली भावनाओं से पनपती है। इस प्रकार हम अनुभव कर सकते हैं कि कभी जानबूझ कर या कभी अनजाने में हमें दुसरे लोगों की बुरी नजर से पीड़ित होकर हानि उठानी पड़ती है।
भ्रूणहत्या एक महाजघन्य अपराध है। इस कृत्य को किसी भी स्थिति में सही नहीं ठहराया जा सकता है। यह कैसी बिडंबना है कि कन्याओं को देवी स्वरुप मानकर कंजकों के रूप में उनकी पूजा करने वाला देश भारत, उनकी भ्रूणहत्या करता है। यह हमारे पाखंडी समाज का क्रूरतम चेहरा है। इस भ्रूणहत्या का दूसरा पहलु यह भी है कि एक सूक्ष्म जीव जो सैंकड़ों-लाखों योनियों से गुजरता हुआ किसी गर्भ में आया था, लेकिन उस भ्रूण की सोच समझकर, अपने स्वार्थ के लिए हत्या कर दी गई। क्या किसी ने सोचा है कि इस अवस्था में, उस सूक्ष्म जीव का क्या होगा? क्योंकि, इस तरह के सूक्ष्म का, हत्या-आत्महत्या करने वाले सूक्ष्म से भी अधिक भयानक दुर्गति होती है। ये विकृत सूक्ष्म जिनकी भ्रूणहत्या होती है, उनका पुनर्जन्म शीघ्र नहीं हो पाता और वे सैकड़ों-हजारों वर्षों तक भटकते हुए ब्रह्मांड तथा हमारे मानवीय जीवन को अनेक प्रकार से दूषित करते रहते हैं।
भारत की आज़ादी के बाद शिमला पंजाब की राजधानी बना और बाद में यह हिमाचल प्रदेश की राजधानी बन गया। शिमला का नाम देवी श्यामला के नाम से लिया गया है, जो देवी काली का प्रतीक है।सुंदर घाटियों और पहाड़ियों से घिरा शिमला प्रकृति का एक सुंदरतम व अद्भुत उपहार है। यह शहर भारत देश का प्रसिद्ध हिल स्टेशन है। ब्रिटिश काल में शिमला अंगेजों की ग्रीष्मकालीन राजधानी थी। शिमला के सौन्दर्य को नजदीक से देखकर, यह कहा जा सकता है कि शिमला की ठंडक व इसके सोंदर्य के कारण ही अंग्रेजों ने इसे अपनी राजधानी बनाया था।
ये ज्वार पूर्णिमा तथा अमावस्या के दिन आते हैं । चूँकि इस दिन सूर्य, पृथ्वी और चन्द्रमा तीनों एक ही सीध में होते हैं, इसलिए सूर्य तथा चन्द्रमा के सम्मिलित आकर्षण बल से पृथ्वी पर ऊँचे ज्वार की उत्पत्ति होती है । इनकी ऊँचाई सामान्य से 20 प्रतिशत अधिक होती है । इनकी उत्पत्ति कृष्ण व शुक्ल पक्ष की अष्टमी को होती है ।
नववर्ष के अवसर पर जब २०२२ में मैं चंबा गया था। यह विडियो चंबा शहर से ३० किलोमीटर पहले का है जहाँ सड़क पर बहुत ही बर्फ थी।
चंबा हिमाचल प्रदेश का एक खूबसूरत जिला है, जो रावी नदी के किनारे स्थित है। पहाड़ी घाटियों और हरे-भरे माहौल के बीच बसा यह शहर पर्यटन के लिए काफी महत्व का है। यधपि यहाँ सड़कों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है, लेकिन सड़कों के सुधार का कार्य चल रहा है। चंबा के इतिहास पर प्रकाश डालें तो पता चलता है कि यहां कभी मारु राजवंश का शासन चला करता था। अतीत से जुड़े कई साक्ष्यों को यहां आज भी देखा जा सकता है।
हनुमान चालीसा गाते हुये विदेशी मित्र
श्रीमदभगवत गीता के 6 (छटवें) अध्याय के 37वें में श्लोक में अर्जुन जिज्ञासा करते हैं की हे कृष्ण! जिसकी साधना में श्रद्धा है पर जिस का प्रयत्न शिथिल है वह अंत समय में अगर योग से विचलित हो जाए तो वह योग सिद्धि को प्राप्त ना करके किस गति को प्राप्त होता है? इसी अध्याय के 40वें श्लोक में इस प्रश्न का उत्तर देते हुए भगवान कृष्ण कहते हैं कि हे प्रथा नंदन ! उसका ना तो इस लोक में और न परलोक में ही विनाश होता है क्योंकि कल्याणकारी काम करने वाला कोई भी मनुष्य दुर्गति को प्राप्त नहीं होता। जो साधक अंत समय में किसी कारणवश योग से साधना में विचलित हो गया है वह योग भ्रष्ट साधक मरने के बाद चाहे इस लोक में जन्म ले, चाहे परलोक में जन्म ले, उसका पतन नहीं होता। उसकी योग में जितनी स्थिति बन चुकी है उससे नीचे वह नहीं गिरता। उसकी साधना नष्ट नहीं होती। उसके जीवन का उद्देश्य नहीं बदलता। वह आगे भी जन्मता मरता रहे किंतु उसका पतन नहीं होता।
यह स्थान श्री कालीनाथ कालेश्वर महादेव मंदिर हिमाचल प्रदेश के जिला हमीरपुर में स्थित है। भगवान शिव का यह मंदिर नादौन-सुजानपुर मार्ग से 5 किमी की दूरी पर ब्यास नदी और कुणाह खड्ड के मिलन स्थल पर स्थित है। यह मंदिर करीब 400 साल से भी ज्यादा पुराना बताया जाता है। इस स्थान की विशेषता यह है कि, इस स्थान को हरिद्वार तीर्थ की तरह मान्यता प्राप्त है। इस स्थान को उत्तरांचल में हरिद्वार के समान पवित्र माना जाता है। जो लोग अपने मृतक परिवार जनों की अस्थियों को लेकर हरिद्वार नहीं जा सकते हैं, वे दाह-संस्कार के उपरांत अपने परिवार जनों के शरीर की अस्थियों को, इस नदी के पवित्र जल में विसर्जित कर देते हैं। इस सम्बन्ध में, इस स्थान को उतना ही महत्व दिया जाता है, जितना कि हरिद्वार का है ।
वियतनाम की इस रोमांचक यात्रा में आपका स्वागत है। वियतनाम की राजधानी हनोई है, और अपनी सदियों पुरानी वास्तुकला और दक्षिण पूर्व एशियाई, चीनी और फ्रांसीसी प्रभावों के साथ समृद्ध संस्कृति के लिए जानी जाती है। वियतनाम का हनोई शहर दिलचस्प और एक गहरा आकर्षण लिए हुए है। एक बात पक्की है कि जो कोई भी हनोई जाता है, हनोई लोगों पर अपनी गहरी छाप छोड़ता है। अविश्वसनीय फ्रांसीसी औपनिवेशिक वास्तुकला से लेकर अभूतपूर्व वियतनामी व्यंजनों तक, यह एक ऐसा शहर है जो आपकी सभी इंद्रियों को अच्छे से तृप्त करना जानता है। वियतनाम की राजधानी, दुनिया की प्राचीन राजधानियों में से एक होने के नाते, हनोई में करने के लिए बहुत सी चीजें हैं जिन्हें आप मिस नहीं करना चाहेंगे।
आज के युग में अधिकतर लोग अपनी अति भौतिकतावादी प्रवृति के कारण व तामसिक खान-पान की वजह से अत्यधिक काम, क्रोध, मोह, लोभ, अहंकार, ईर्ष्या, हिंसा व द्वेष जैसे दोषों से जकड़े रहते हैं। उन लोगों के इन्हीं दोषों के कारण उनसे लगातार राजसिक-तामसिक तरंगें स्वतह ही प्रवाहमान होती रहती हैं और नकारात्मक ढंग से अन्य लोगों को प्रभावित करती रहती हैं। सामान्तया इसी तरह का बुरा प्रभाव जो दूसरों पर पड़ता है, इसे ही तामसिक कुदृष्टि या नजर लगना कहा जाता है। जो उनकी विषेली भावनाओं से पनपती है। इस प्रकार हम अनुभव कर सकते हैं कि कभी जानबूझ कर या कभी अनजाने में हमें दुसरे लोगों की बुरी नजर से पीड़ित होकर हानि उठानी पड़ती है।
भ्रूणहत्या एक महाजघन्य अपराध है। इस कृत्य को किसी भी स्थिति में सही नहीं ठहराया जा सकता है। यह कैसी बिडंबना है कि कन्याओं को देवी स्वरुप मानकर कंजकों के रूप में उनकी पूजा करने वाला देश भारत, उनकी भ्रूणहत्या करता है। यह हमारे पाखंडी समाज का क्रूरतम चेहरा है। इस भ्रूणहत्या का दूसरा पहलु यह भी है कि एक सूक्ष्म जीव जो सैंकड़ों-लाखों योनियों से गुजरता हुआ किसी गर्भ में आया था, लेकिन उस भ्रूण की सोच समझकर, अपने स्वार्थ के लिए हत्या कर दी गई। क्या किसी ने सोचा है कि इस अवस्था में, उस सूक्ष्म जीव का क्या होगा? क्योंकि, इस तरह के सूक्ष्म का, हत्या-आत्महत्या करने वाले सूक्ष्म से भी अधिक भयानक दुर्गति होती है। ये विकृत सूक्ष्म जिनकी भ्रूणहत्या होती है, उनका पुनर्जन्म शीघ्र नहीं हो पाता और वे सैकड़ों-हजारों वर्षों तक भटकते हुए ब्रह्मांड तथा हमारे मानवीय जीवन को अनेक प्रकार से दूषित करते रहते हैं।
भारत की आज़ादी के बाद शिमला पंजाब की राजधानी बना और बाद में यह हिमाचल प्रदेश की राजधानी बन गया। शिमला का नाम देवी श्यामला के नाम से लिया गया है, जो देवी काली का प्रतीक है।सुंदर घाटियों और पहाड़ियों से घिरा शिमला प्रकृति का एक सुंदरतम व अद्भुत उपहार है। यह शहर भारत देश का प्रसिद्ध हिल स्टेशन है। ब्रिटिश काल में शिमला अंगेजों की ग्रीष्मकालीन राजधानी थी। शिमला के सौन्दर्य को नजदीक से देखकर, यह कहा जा सकता है कि शिमला की ठंडक व इसके सोंदर्य के कारण ही अंग्रेजों ने इसे अपनी राजधानी बनाया था।
ये ज्वार पूर्णिमा तथा अमावस्या के दिन आते हैं । चूँकि इस दिन सूर्य, पृथ्वी और चन्द्रमा तीनों एक ही सीध में होते हैं, इसलिए सूर्य तथा चन्द्रमा के सम्मिलित आकर्षण बल से पृथ्वी पर ऊँचे ज्वार की उत्पत्ति होती है । इनकी ऊँचाई सामान्य से 20 प्रतिशत अधिक होती है । इनकी उत्पत्ति कृष्ण व शुक्ल पक्ष की अष्टमी को होती है ।
नववर्ष के अवसर पर जब २०२२ में मैं चंबा गया था। यह विडियो चंबा शहर से ३० किलोमीटर पहले का है जहाँ सड़क पर बहुत ही बर्फ थी।
चंबा हिमाचल प्रदेश का एक खूबसूरत जिला है, जो रावी नदी के किनारे स्थित है। पहाड़ी घाटियों और हरे-भरे माहौल के बीच बसा यह शहर पर्यटन के लिए काफी महत्व का है। यधपि यहाँ सड़कों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है, लेकिन सड़कों के सुधार का कार्य चल रहा है। चंबा के इतिहास पर प्रकाश डालें तो पता चलता है कि यहां कभी मारु राजवंश का शासन चला करता था। अतीत से जुड़े कई साक्ष्यों को यहां आज भी देखा जा सकता है।
हनुमान चालीसा गाते हुये विदेशी मित्र
Copyright © 2024 Divine Grace - All Rights Reserved.
Powered by GoDaddy